01-05-84  ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

विस्तार में सार की सुन्दरता

सर्व को सार स्वरूप में स्थित करने वाले बापदादा शक्तिशाली आत्माओं प्रति बोले:-

‘‘बापदादा विस्तार को भी देख रहे हैं और विस्तार में सार स्वरूप बच्चों को भी देख रहे हैं। विस्तार इस ईश्वरीय वृक्ष का श्रृंगार है। और सार स्वरूप बच्चे इस वृक्ष के फल स्वरूप हैं। विस्तार सदा वैराइटी रूप होता है? और वैराइटी स्वरूप की रौनक सदा अच्छी लगती है। वैराइटी की रौनक वृक्ष का शृंगार जरूर है, लेकिन सार स्वरूप फल शक्तिशाली होता है। विस्तार को देख सदा खुश होते हैं और फल को देख शक्तिशाली बनने की शुभ आशा रखते हैं। बापदादा भी विस्तार के बीच सार को देख रहे थे। विस्तार में सार कितना सुन्दर लगता है! यह तो सभी अनुभवी हो। सार की परसेन्टेज और विस्तार की परसेन्टेज दोनों में कितना अन्तर हो जाता है? यह भी जानते हो ना। विस्तार की विशेषता अपनी है और विस्तार भी आवश्यक है, लेकिन मूल्य सार स्वरूप फल का होता है। इसलिए बापदादा दोनों को देश हर्षित होते हैं। विस्तार रूपी पत्तों से भी प्यार है। फूलों से भी प्यार तो फलों से भी प्यार। इसलिए बापदादा को बच्चों के समान सेवाधारी बन मिलने आना ही पड़ता है। जब तक समान नहीं बनें तो साकार मिलन मना नहीं सकते। चाहे विस्तार वाली आत्मायें हैं, चाहे सार स्वरूप आत्मायें हैं। दोनों ही बाप के बने अर्थात् बच्चे बने, इसलिए बाप को सर्व नम्बरवार बच्चों के मिलन भावना का फल देना ही पड़ता है। जब भक्तों को भी भक्ति का फल अल्पकाल का प्राप्त होता ही है तो बच्चों का अधिकार बच्चों को अवश्य प्राप्त होता है।

आज मुरली चलाने नहीं आये हैं। जो दूर-दूर से सभी आये हैं तो मिलन मनाने का वायदा निभाने आये हैं। कोई सिर्फ प्रेम से मिलते, कोई ज्ञान से मिलते, कोई समान स्वरूप से मिलते। लेकिन बाप को तो सबसे मिलना ही है। आज सब तरफ से आये हुए बच्चों की विशेषता देख रहे थे। एक देहली की विशेषता देख रहे थे। सेवा की आदि का स्थान है और आदि में भी सेवाधारियों को, सेवा की आदि के लिए जमुना का किनारा ही प्राप्त हुआ। जमुना किनारे जाकर सेवा की ना! सेवा का बीज भी देहली में जमुना किनारे पर शुरू हुआ और राज्य का महल भी जमुना किनारे पर ही होगा। इसलिए गोपीवल्लभ, गोप गोपियों के साथ-साथ जमुना किनारा भी गाया हुआ है। बापदादा वह स्थापना की शक्तिशाली बच्चों की टी.वी देख रहे थे। तो देहली वालों की विशेषता वर्तमान समय में भी है और भविष्य में भी है। सेवा का फाउण्डेशन स्थान भी है और राज्य का भी फाउण्डेशन है। फाउण्डेशन स्थान के निवासी इतने शक्तिशाली हो ना! देहली वालों के ऊपर सदा शक्तिशाली रहने की जिम्मेवारी है। देहली निवासी निमित्त आत्माओं को सदा इस जिम्मेवारी का ताज पड़ा हुआ है ना। कभी ताज उतार तो नहीं देते हैं! देहली निवासी अर्थात् सदा जिम्मेवारी के ताजधारी। समझा देहली वालों की विशेषता। सदा इस विशेषता को कर्म में लाना है। अच्छा-

दूसरे हैं सिकीलधे कर्नाटक वाले। वह भावना और स्नेह के नाटक बहुत अच्छे दिखाते हैं। एक तरफ अति भावना और अति अति स्नेही आत्मायें हैं दूसरी तरफ दुनिया के हिसाब से एज्युकेटेड नामीग्रामी भी कर्नाटक में हैं तो भावना और पद के अधिकारी, दोनों ही है। इसलिए कर्नाटक से आवाज़ बुलन्द हो सकता है। धरनी आवाज़ बुलन्द की है। क्योंकि वी.आई.पीज होते हुए भी भावना और श्रद्धा की धरनी होने के कारण निर्मान है। वह सहज साधन बन सकते हैं। कर्नाटक की धरनी इस विशेष कार्य के लिए निमित्त है। सिर्फ अपनी इस विशेषता को भावना और निर्मान दोनों को सेवा में सदा साथ रखें। इस विशेषता को किसी भी वातावरण में छोड़ नहीं दें। कर्नाटक की नाव के दो चप्पू हैं। इन दोनों को साथ-साथ रखना। आगे पीछे नहीं। तो सेवा की नांव धरनी की विशेषता की सफलता दिखायेंगी। दोनों का बैलेन्स नाम बाला करेगा। अच्छा-

सदा स्वयं को सार स्वरूप अर्थात् फल स्वरूप बनाने वाले, सदा सार स्वरूप में स्थित हो औरों को भी सार की स्थिति में स्थित करने वाले, सदा शक्तिशाली आत्मा, शक्तिशाली याद स्वरूप, शक्तिशाली सेवाधारी, ऐसे समान स्वरूप मिलन मनाने वाले श्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।

अव्यक्त बापदादा की पार्टियों से मुलाकात

1. सदा अपने को बाप के वर्से के अधिकारी अनुभव करते हो? अधिकारी अर्थात् शक्तिशाली आत्मा हैं - ऐसे समझते हुए कर्म करो। कोई भी प्रकार की कमज़ोरी रह तो नहीं गई है? सदा स्वयं को जैसे बाप वैसे हम, बाप सर्व शक्तिवान है तो बच्चे मास्टर सर्वशक्तिवान हैं, इस स्मृति से सदा ही सहज आगे बढ़ते रहेंगे। यह खुशी सदा रहे क्योंकि अब की खुशी सारे कल्प में नहीं हो सकती। अब बाप द्वारा प्राप्ति है, फिर आत्माओं द्वारा आत्माओं को प्राप्ति है। जो बाप द्वारा प्राप्ति होती है वह आत्माओं से नहीं हो सकती। आत्मा स्वयं सर्वज्ञ नहीं है। इसलिए उससे जो प्राप्ति होती है वह अल्पकाल की होती है और बाप द्वारा सदाकाल की अविनाशी प्राप्ति होती है। अभी बाप द्वारा अविनाशी खुशी मिलती है। सदा खुशी में नाचते रहते हो ना! सदा खुशी के झूले में झूलते रहो। नीचे आया और मैला हुआ। क्योंकि नीचे मिट्टी है। सदा झूले में तो सदा स्वच्छ। बिना स्वच्छ बने बाप से मिलन मना नहीं सकते। जैसे बाप स्वच्छ हैं उससे मिलने की विधि स्वच्छ बनना पड़े। तो सदा झूले में रहने वाले सदा स्व्च्छ। जब झूला मिलता है तो नीचे आते क्यों! झूले में ही खाओ, पियो, चलो... इतना बड़ा झूला है। नीचे आने के दिन समाप्त हुए। अभी झूलने के दिन हैं। तो सदा बाप के साथ सुख के झूले में, खुशी, प्रेम, ज्ञान, आनन्द के झूले में झूलने वाली श्रेष्ठ आत्मायें हैं, यह सदा याद रखो। जब भी कोई बात आये तो यह वरदान याद करना तो फिर से वरदान के आधार पर साथ का, झूलने का अनुभव करेंगे। यह वरदान सदा सेफ्टी का साधन है। वरदान याद रहना अर्थात् वरदाता याद रहना। वरदान में कोई मेहनत नहीं होती। सर्व प्राप्तियाँ सहज हो जाती हैं।

2. सभी अपने को श्रेष्ठ भाग्यवान आत्मा अनुभव करते हो? सबसे बड़ा भाग्य - भाग्यविधाता अपना बन गया। सदा इस श्रेष्ठ भाग्य की खुशी और नशा रहे। यह रूहानी नशा है जो सदा रह सकता है। विनाशी नशा सदा रहे तो नुकसान हो जाए। जो इस रूहानी नशे में होगा उसको स्वत: ही इस पुरानी दुनिया की आकर्षण भूली हुई होगी। ना पुरानी देह, न पुराने देह के सम्बन्ध, सभी सहज ही भूल जाते हैं। भूलने की मेहनत नहीं करनी पड़ती। देह भान भी भूला हुआ होगा। आत्म अभिमानी होंगे। सदा देही-अभिमानी स्थिति ही सम्पूर्ण स्थिति है। तो सदा इसी स्मृति में रहो कि हम भाग्यवान आत्मायें हैं, कोई साधारण भाग्यवान, कोई श्रेष्ठ भाग्यवान हैं। ‘श्रेष्ठ’ - शब्द सदा याद रखना, ‘‘श्रेष्ठ आत्मा हूँ, श्रेष्ठ बाप का हूँ और श्रेष्ठ भाग्यवान हूँ’’ - यही वरदान सदा साथ रहे। जब श्रेष्ठ आत्मा, श्रेष्ठ समय, श्रेष्ठ संकल्प, श्रेष्ठ वृत्ति, श्रेष्ठ कृत्ति हो जायेगी तो आप सबको देखकर अनेक आत्माओं को श्रेष्ठ बनने की शुभ आशा उत्पन्न होगी। इससे सेवा भी हो जायेगी।

विदाई के समय:- गुड-मोर्निंग तो सब करते हैं लेकिन आपकी गाड के साथ मोर्निंग है तो गाडली-मोर्निंग हो गई ना। गाड के साथ रात बिताई और गाड के साथ मोर्निंग मना रहे हो। तो सदा ‘गाड और गुड’ दोनों ही याद रहें। गाड की याद ही गुड बनाती है। अगर गाड की याद नहीं तो गुड नहीं बन सकते। आप सबकी सदा ही गाडली लाइफ है, इसलिए हर सेकण्ड, हर संकल्प गुड ही गुड है। तो सिर्फ गुड-मोर्निंग, गुड-इवनिंग, गुड-नाइट नहीं लेकिन हर सेकण्ड, हर संकल्प गाड की याद के कारण गुड है। ऐसे अनुभव करते हो? अभी जीवन ही गुड है क्योंकि जीवन ही गाड के साथ है। हर कर्म बाप के साथ करते हो ना। अकेले तो नहीं करते? खाते हो तो बाप के साथ, या अकेले खा लेते हो? सदा गाड और गुड दोनों का सम्बन्ध याद रखो और जीवन में लाओ। समझा - अच्छा सभी को बापदादा का विशेष अमृतवेले का अमर यादप्यार और नमस्ते।’’

प्रश्न:- फरिश्ता बनने के लिए किस बन्धन से मुक्त होना पड़ेगा?

उत्तर:- मन के बन्धनों से मुक्त बनो। मन के व्यर्थ संकल्प भी फरिश्ता नहीं बनने देंगे। इसलिए फरिश्ता अर्थात् जिसका मन के व्यर्थ संकल्पों से भी रिश्ता नहीं। सदा यह याद रहे कि हम फरिश्ते किसी रिश्ते में बंधने वाले नहीं। अच्छा-